नई दिल्ली । कड़ाके की सर्दी में दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव ने दिल्ली से लखनऊ तक की सियासत को गर्मा दियास है। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाली केंद्र को निशाने पर रखते हुए लगाई गई एक अदालत ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के साथ मंच साझा करने वाले सपा प्रमुख और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कांग्रेस को नया क्लेश दे दिया है। यह घटनाक्रम तब हुआ है जब इंडिया गठबंधन के कई साथी राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी को नेतृत्व सौंपने की बात कर रहे हैं।
यूं तब आप और सपा दोनों इंडिया गठबंधन के साथी हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस एक दूसरे के आमने-सामने हैं। इसके बाद सपा ने कांग्रेस की बजाय केजरीवाल को तरजीह देकर नए समीकरणों को हवा दे दी है। यूपी में राहुल गांधी के साथ दो लड़कों की जोड़ी बना चुके अखिलेश के ताजा कदम के कई मायने निकाले जा रहे हैं। अखिलेश यादव ने ना सिर्फ केजरीवाल के साथ मंच साझा किया बल्कि उन्हें दिल्ली का लाल बताकर फिर उन्हें जितवाने की अपील की।
इस मौके पर अखिलेश ने केजरीवाल की जमकर तारीफ कर निशाने पर भाजपा और मोदी सरकार को रखा। भले ही उन्होंने कांग्रेस का नाम नहीं लिया, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए अखिलेश का रुख एक बड़े झटके को तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की बजाय केजरीवाल को तरजीह देकर अखिलेश ने कांग्रेस को स्पष्ट संकेत दे दिया है। भले ही दिल्ली चुनाव में सपा की कोई खास भूमिका ना हो, लेकिन उन्होंने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है। दूसरी तरफ खुद केजरीवाल और संजय सिंह ने अखिलेश यादव की खूब तारीफ की और उन्हें सुख दुख में साथ देने वाला नेता बताया।
नेतृत्व को लेकर पहले ही दबाव में चल रही कांग्रेस फिलहाल अखिलेश की नई दोस्ती पर चुप्पी साधे हुए है। आगे सपा और कांग्रेस के रिश्ते किस दिशा में बढ़ते हैं इस पर लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है। कुछ विश्लषकों का मानना है कि यह अखिलेश की प्रेशर पॉलिटिक्स से अधिक कुछ नहीं है। ना अखिलेश केजरीवाल की दिल्ली में ज्यादा कुछ मदद कर सकते हैं और ना ही आप यूपी में कोई खास जनाधार रखती है। अखिलेश अगले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को दबाव में रखना चाहते हैं।
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